जब आकाश में चंद्रमा और सूर्या दोनों उपस्थित होते है
चंद्रमा आसमान रुपी इस चादर से धीरे धीरे अपनी चांदनी समेट रहा होता है
तो दिवाकर अपनी उजली लालिमा से इस धरा को रंगने के लिए उत्कंठित हो रहा है
उस समय ठीक वैसा ही प्रतीत होता है जैसा की गोधुली के समय जब सागर में सूर्या समाधी लेता दिखाई पड़ता है
जब इस वसुधा और आकाश का क्षितिज पर मिलन होता है
इन दोनों ही स्थितियों में हर दुख दर्द पीड़ा इच्छाए शांत हो जाती है और ये मानव चित्त असीम शांति अनुभव करता है
चंचल मन की सभी उद्दंडता शांत होकर आत्म मंथन करने लगता है
न किसी का मोह सताता है न किसी की याद
ना कुछ पाने की आस न कुछ खोने का डर.
इस समय यदि व्यक्ति अपने साथ अर्थात अकेला हो तो आत्म साक्षात्कार कर सकता है क्योंकि इस समय मनुष्य की आत्मा अपने पवित्रतम रूप में होती है .इसलिए जब इस समय हम अपना आकलन करते है तो हम अपने आप को अपने सच्चे रूप में जान लेते है हमारी हा अच्छाई और बुराई का पता चल जाता है
यह स्थिति किसी भी ध्यान योग से अधिक शांति देने वाली होती है क्योंकि इस समय हमारा मन पूरी तरह आत्मा के नियंत्रण में होता है
और वैसे भी कहते है ना की मन की शांति तो मन में ही होती है नाहक ही हम उसे इधर उधर तलाशते रहते है |
"छुपाना जनता तो जग मुझे साधू समझता ,शत्रु बन गया छल रहित व्यवहार मेरा "
Great work Charlie !! I liked it
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