Monday, November 21, 2011

कल की आस - कविता में बाते बातों में कविता

कल की आस - कविता में बाते बातों में कविता 


कल कल कल ,कितने कल आये और चले गए
कल एक और कल आएगा और इसी तरह चला जाएगा
और यूँही देखता रह जाऊंगा मैं सपना ,उस कल के आने का
जिस कल में होगा साकार वो सपना , जो न जाने कितने पल पहले देखा था


कितनी अजीब बात है जो बीत गया वो भी कल था 
और जो आएगा वो भी कल होगा
बस जिए जा रहे है सब कल के इंतज़ार में
 किसी को बीते हुए कल के फिर से लौट आने का इंतज़ार है 
तो कोई आने वाले सुनहरे कल की बात जोह रहा है

उस बीते कल का इंतज़ार नहीं है मुझे 
के एक बार और आ जाये लौट कर 
और करदे मुझे फिर से मेरी खुशियों से दूर 
मुझे वो कल चाहिए 
जिसमे सपने है 
एक नए खुले आसमान के 
एक आज़ाद ज़मीन के 
एक हँसती जिंदगी के 
कब आएगा मेरा तुम्हारा सबका वो सुनहरा कल 
जिस कल का बरसो से इंतज़ार है ?
वो कल वो पल 

न जाने इस आज़ाद खूबसूरत कल का सपना देखते बदल गए कितने आज बीते हुए कल में
फिर भी एक आस है एक अनबुझी प्यास है
हाँ मुझे आज भी उस खूबसूरत कल की तलाश है

वो आस यूँ ही नहीं है बरसो से जगी हुई 
उस आस के पीछे एक राज़ है 
एक ख्याल है ऐसे जहां का 
जो ना हा हो तेरा न हो मेरा, जो हो अपना 
जहां न हो कोई रंजीश ना कोई साज़िश 
ऐसा खुला आसमान जहाँ पंख पसारे बाज़ और बटेर एक साथ 
ऐसी अज्जाद ज़मीन जहां न कोई रजा न कोई प्रजा 
वो ख्याल ही कितना हसीं है 
जो कहता है के ये आस कभी मरेगी नहीं 
कभी कम न होगी 
उस खूबसूरत कल को पाने की आस 
वो उन्भुझी बरसों की प्यास 
ये आस और ये प्यास कायम रहेंगे दोनों 
चाहे रहूँ या न रहूँ मैं उस कल को देखने के लिए 


based on conversation with Pratush Kumaar

2 comments: