कलयुग की
द्रौपदियाँ
तकरीबन ४-५ साल पहले एक फिल्म आई थी
MATRUBHOOMI- nation without women
एक ऐसे गाँव की कहानी जहाँ एक भी लड़की नहीं
होती शादी के लिए न जवान न बुड्ढी न बच्ची
गलती से एक पंडित को एक लड़की का पता चलता है
जिसकी शादी वो ५ भाइयों से एक साथ करवाता है
और एक ५ भाइयों के साथ उस लड़की का ससुर भी
उसे भोगता है
बहुत कम लोग जानते है इस फिल्म के बारे में,
जब ये फिल्म बनी थी तो बस एक कल्पना पर थी की भ्रूणहत्या कन्या हत्या के चलते एक
समय आएगा जब लड़कियों की तादाद न के बराबर हो जाएगी
आज अचानक एक खबर पढ़ कर लगा के उस फिल्म की
बात परदे से उतर कर सच में तब्दील हो गयी है
ऐसी स्थिति जहाँ लड़कियों को अपने पति के साथ
साथ अपने देवर या दूसरे रिश्तेदारों से भी सम्बन्ध बनाने पड़ते है क्योंकि उनके
विवाह के लिए कोई लड़की नहीं बची
इसका मतलब ये की पहले खुद ही कन्या हत्या कर
लड़कियों को खत्म किया उस पर भी अपनी जाती समाज की नाक के नाम पर दूसरी जाती में
विवाह भी वर्जित किया और अगर किसी ने बहार की जाती में विवाह किया तो उसकी सजा एक
दर्द भरी मौत
ये हरकतें निश्चित रूप से इंसानों की नहीं हो
सकती न ही जानवर ऐसा कर सकते ये सब तो बस नराधम ही कर सकते है
मतलब पैदा होने से पहले मरे तो कन्या और अगर
जीती रह गयी तो उसे भी बाँट देते है पति और उसके भाइयों में और गलती से आवाज उठाई
तो मार या मौत .
न जाने कौनसा सम्मान देखते है समाज के
ठेकेदार इसमें
और सबसे बड़ी बात ये कर्म उन इंसानों के है जो
हर उत्सव हर पूजा में किसी न किसी देवी को पूजते है
चाहे वो लक्ष्मी हो सरस्वती हो या दुर्गा पर
असल जिंदगी में उसी देवी तुल्य नारी पर ऐसे अत्याचार कर अपने पौरुष का सुबूत देते
है
और इस घटना की विडम्बना ये है की ये उस
प्रान्त की घटना है जहाँ की मुख्यमंत्री खुद एक महिला है
और ये प्रान्त भारत की तथाकथित प्रथम परिवार
की कर्मभूमि है फिर भी किसी की नज़र इस पाप कर्म पर नहीं पड़ती
आज हम आगे बढ़ने की बात करते है मानवाधिकारों
की बात करते है पर ये सब बस एक ढकोसला है पांच सितारा में बैठ कर मानवाधिकारों की
बात करते है और अगर ऐसी किसी घटना का मुद्दा उठता भी है तो उस का इतना वीभत्स
प्रचार के पीड़ित को शारीरिक के साथ मानसिक पीड़ा भी होने लगती है
मन हम बहुत क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे है पर
मानवता की राह में हम हर दिन पीछे जा रहे है
मनुष्य से पशु तो हम उस दिन ही बन गए थे जब
हमने अजन्मे बछो को मारना शुरू कर दिया था अब ये सब घटनाये तो यही इंगित करती है
की हम बहुत तेज़ी से राक्षस बन रहे है जो बहार से इंसान जैसा दिखता है
बचपन में पढ़ा था
यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता
अर्थात जहा नारी की पूजा होती है वह देवता का
निवास है फिर तो लगता है के देवता अब कोई और ठिकाना ढूँढने चले गए है क्योंकि यहाँ
अब नारी की पूजा नहीं उसकी बलि दी जाती है अपने स्वार्थ और भूख के लिए
-योगेश पारीक
No comments:
Post a Comment