देश हमें देता है सब कुछ
हम भी तो कुछ देना सीखे
बड़े दिनों से एक बात
को अपने आस पास लोगो को करते देख रहा हूँ , देश की वर्तमान स्थिति और भ्रष्टाचार
की तुलना दुनिया के विकसित देशों से कर रहे थे या ये कहे के अपने देश की तुलना कर
मीन मेख निकल रहे थे.
वो भी इस देश का
भविष्य कहलाने वाले युवा जो खुद को पिछली पीढ़ी से समझदार और ज्यादा व्यावहारिक
मानते है . बातें भी कोई नयी नहीं थी वोही बातें जो हम किसी नुक्कड़ से लेके टीवी
पर चलने वाले टॉक शो में होती है .
मैं मानता हू जो लोग
ये सब बातें करते है उन लोगो ने इस देश की बुराइयां निकालने के सिवा कुछ भी नहीं
किया देश के लिए . देश के हालात को देख कर वहीपुराना रोना की इस देश का कुछ नहीं
हो सकता सब के सब भ्रष्ट है , लोगो को अपनी जिम्मेदारियां नहीं पता कोई कुछ करना
ही नहीं चाहता और ये सब भी काफी नहीं तो बस करने लगते है ब्रिटेन अमेरिका या ऐसे
ही किसी देश से तुलना .
मैं मनाता हू की हम
अभी तक विकसित देशो की गिनती में नहीं आते पर इसका मतलब ये नहीं के हम विकसित हो
नहीं सकते .
जहाँ तक भ्रष्टाचार और दूसरी बुराइयों की बात है
तो इन बुराइयों की जड़ें भी कहीं न कहीं हमारे अंदर ही छुपी है ,एक और गौर करने
वाली बात है के हम हर बुराइयों के लिए सर्कार नेता राजनीती को कोसते है पर कभी
सोचा है ये सभी नेता जन प्रतिनीधि है , और जन प्रतिनीधि का अर्थ है जनता द्वारा
चुना गया प्रतिनीधि .
हमें इन्हें चुनने
का मौका दिया जाता है तब हम शायद ही कभी ये सोचते है के ये कैसा इंसान है , क्या
यह ईमानदार है क्या ये अपनी जिम्मेदारियां समझता है शायद हम में से कुछ प्रतिशत ये
सोचते भी है पर विडम्बना ये है की उस कुछ प्रतिशत में से गिने चुने ही अपने मत का
उपयोग करते है नहीं तो हम पढे लिखे समझदार लोग कभी धुप कभी बारिश या कभी छुट्टी खराब
कौन करे सोच कर निकलते ही नहीं वोट देने के लिए और बचे लोग जो वोट देते है उनमे से
कुछ इंसान पर नहीं एक पांच सौ के नोट और एक देसी शराब की बोतल देने वाले पे मोहर
लगते है और बचे लोग पार्टी जाती या इलाके के नाम पे वोट देते है
जब हम ही इन जन
प्रतिनिधियों को चुनने के प्रति ईमानदार नहीं है तो कैसे उम्मीद कर सकते है की ये
नेता ये देश चलने वाले अपने काम को इमानदारी से करेंगे
अब शायद समझ आया के
मैंने क्यों कहा था की भ्रष्टाचार की जड़े कही न कही हमारे अंदर ही छुपी है
दूसरी बड़ी बात भारत
को विकासशील से विकसित बनाने की बात तो ये निः संदेह युवाओ के हाथ में ही है
पर हम युवाओं की
समस्या ये है की अपने विद्यार्थी जीवन में पूरे जोश में रहते है की बस एक बार पढ़
ले फिर देखना देश के लिए क्या क्या करता हूँ और जैसे ह पढाई पूरी होती है सपने
देखने लगते है देश से पलायन का
बहुत ही अच्छा तरीका
ही अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का ,इस पर भी बोलते है के वह से पैसे भेजूंगा ना
पर येपैसे तो पारिवार
के लिए है, जिस देश ने संसाधन देकर डॉक्टर इंजिनियर साइंटिस्ट बनाया उसे आगे बढ़ाने
के लिए क्या किया हमने .
बहार जाने का कारन
पूछो तो किसी रट्टू तोते की तरह एक ही जवाब क्या रखा है इस देश में यानि पाल पास
कर बड़ा किया साधारण माँ ने पर जब सुख पपने का समय आया तो साधारण माँ को छोड़ कर
पड़ोस की रूपवान वेश्या की दहलीज पर जाएँगे
कभी सोचा है दुनिया
को ज्ञान देने वाला हमारा देश आज पिछड़ा क्यूँ है ? पहले यहाँ लोग ज्ञान लेने आते
थे अब तो यहाँ के लोग ही इसकी कद्र नहीं करते टी और किसी से क्या आस रखना .
छात्र जीवन का वह
जोश,बाहरी चमक और साधनों की मृग मरीचिका में कहीं अपना अस्तित्व खो देता है.
क्या हमारे पूर्वजों
ने ऐसे भविष्य का सपना देखा था जो इस राष्ट्र को बुलंदी तक पहुंचाने की बात तो दूर
इसे नीचा दिखाने से भी नहीं चूकते .
ये नहीं के हम में
कुछ करने का जुनून या ज़ज्बा नहीं है बस ज़रूरत है तो उस ज़ज्बे को बनाए रखने की .
माना हम में कुछ
बुराइयां है पर उनकी निंदा करने या बस बात करने से कुछ नहीं होने वाला इन्हें
मिटने का प्रयत्न करना होगा वो भी एक ईमानदार प्रयत्न .
हर एक के अंदर ये
सोच विकसित करनी होगी
“देश हमें देता है
सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे ”
जिस दिन ये सोच हर
मन में घर कर जाएगी उस दिन ये विकासशील से विकसित बनाने का सपना भी पूरा हो जाएगा
"जननी जन्म भूमिशच: स्वर्गाद्पी गरियसी"
जननी और जन्म भूमि स्वर्ग से भी महान है "
-योगेश पारीक
२\११\२०११