इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है के बुद्धिजीवी और छदम बुद्धिजीवी में क्या अंतर है .
आज का युग छदम बुद्धिजीवियों का है सिर्फ बातों से रिझाना बिना विषय की जानकारी के भी अनर्गल बोलना और सामने वाले को बताना के देखो तुम सब कुछ जान कर भी कुछ नहीं जानते और हम बिना कुछ जाने भी प्रसिद्द है .
इस प्रकार के बुद्धिजीवी इस इन्टरनेट युग की दें है जहाँ आप कुछ भी जानना चाहो वो आप को चुटकी बजाते ही मिल जाता है .
आज आपको हर कोई ज्ञान की गंगा बहाता दिख जाएगा. ज्ञान देने में या बुद्धिजीवी होने में कोई बुराई नहीं है मैं जानता हु कहना गलत नहीं है पर मैं ही जानता हु कहना गलत है.
और ये बात कभी कभी मुझ पर भी लागु होती है पर मुझे अपनी गलती मानने में कोई बुराई नहीं दिखती
तो पहले बात करते है के बुद्धिजीवी कौन है या साधारण शब्दों में समझदार कौन है ?
अब समझदारी या ज्ञान के लिए कोई पैमाना नहीं है ये सब आस पास के वातावरण पर निर्भर करता है
जैसे की एक मल्लाह से पूछो के उसे गणित के महान विद्वान आर्यभट या लाप्लास के बारे में पता है ?
या उसे गति के नियमो के बारे में कुछ पता है ? वो ना में सर हिला देगा और उसी क्षण हम उसे मूर्ख या अज्ञानी समझ लेंगे. अब ज़रा सोचो बीच नदी में वो ही मल्लाह हमें पूछे के क्या हमें तेज़ लहरों में से नाव पार लगाना या तैरना आता है ? और यदि हम ना में ज़वाब देंगे तो उसी पल हम उसके लिए मूर्ख या नाकारा साबित हो गए .
तो अब इस परिस्थिति में ये कैसे नतीजा निकले के कौन समझदार है और कौन मूर्ख ?
मेरे विचार से इस संसार में ना कोई सबसे समझदार है ना कोई सबसे मूर्ख
हो सकता है हमारी रुचि के क्षेत्र में हमें बहुत ज्ञान हो और जिस क्षेत्र में रुचि नहीं उसमे हम निरे मूर्ख हो
हर इंसान की एक परिधि है जिसके अन्दर वो ज्ञानी है और जिसके बाहर वो मूर्ख है जो इन्सान इस बात को मानता है वो ही बुद्धिजीवी है और जो इंसान इस बात को जानकार भी अनजान बन खुद को बुद्धिजीवी कहता है वो छदम बुद्धिजीवी है .
एक इंसान भाषा ज्ञान में उत्त्कृष्ट है तो दूसरा राजनीति या समयकी में
एक गणित में तेज़ है तो दूसरा साहित्य में जिस प्रकार उनकी रूचि के विषय अलग अलग होते है उसी प्रकार उनकी समझदारी और बुद्धिजीविता के मापदंड .
अब आते है उस बात पर जिस की भूमिका बांधने में ही इतने शब्द लग गए
तो इस बारे में लिखने का विचार मुझे कल आया जब मैं किसी का लिखा कुछ पढ़ रहा था
जो भी लिखा था वो उनका अपना दृष्टिकोण था बस मैं उस विचार से असहमत था तो मैंने अपना मत लिखने का सोचा ,
उन्होंने लिखा था के मेरी विचारिक उपलब्धि मेरी समझदारी का कारण परिवार है इस बात से तो मैं भी सहमत हु पर आगे जो बात मुझे खटकी वो थी की इन्सान समझदार या बुद्धिजीवी तभी हो सकता है जब वो उच्च कुल या अत्यधिक ज्ञानवान माता पिता की संतान हो . मेरे हिसाब से ये गलत है यदि आज के ज़माने के छदम बुद्धिजीवियों को छोड़ दे तो जो भी विलक्षण प्रतिभाशाली बुद्धिजीवी हुए है जिन्होंने अपने विचारों या अपने कार्यो से ना केवल अपना बल्कि संसार का नाम ऊपर किया है
Steve Jobs , sir Issac Newton , Leo da vinci, Albert Einstine , Walt Disney, Charles Spencer Chaplin, pt. Shri Ram Sharma Acharya, Mahatma Gandhi, Anna Hazare , shri Hariwansh Rai Bachhan , shri Hedgewar,
APJ Abdul Kalam,Ramanujan ये सब आज भी सर्वकालिक महान और विद्वान बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आते है और इस बात के साथ इनमे एक समानता और भी है ये सभी माध्यम या अभावग्रस्त परिवारों से थे ,
इनमे से कुछ को तो विधिवत शिक्षा भी नहीं मिली थी पर फिर भी इन्होने स्वयं को साबित किया और याद रहे इनके युग में इन्टरनेट भी नहीं था
इन सभी ने अभाव होते हुए भी अपनी विद्वता श्रेष्टता दिखाई और इनके माता पिता इनकी तुलना में अत्यंत ही साधारण थे .
अगर मेरे उन विद्वान मित्र का मत माने तो इन्हें भी अत्यंत साधारण होना चाहिए था पर नहीं ये तो असाधारण बने कारण इनमे ललक थी इनमे जूनून था कुछ करने का और ज्ञान और बुद्धि को बढ़ने के लिए किसी gene की ज़रूरत नहीं होती बस उसके लिए तो सपने और उन्हें पूरा करने का जुनून और लगन ही काफी है .
और शायद ये सुनने में बुरा लगे पर रेस जीतने वाले घोड़े का भी बच्चा ज़रूरी नहीं रेस जीतने वाला ही पैदा हो
तो इंसानों में ये कैसे मुमकिन है हम बस सुविधाए दे सकते है जुनून या लगन नहीं तभी तो कितनी बार देखने को मिलता है कोचिंग में हजारों लाखो खर्च कर के भी IIM IIT ya IAS नहीं निकाल सकते और एक अत्यंत गरीब अनपढ़ किसान या रिक्शा चलाने वाले की संतान पुरानी किताबो के सहारे भी सफल हो जाता है
इश्वर कभी कभी किसी को माता पिता देने में पक्षपात भले ही कर दे पर वो कभी किसी को बुद्धि देने में पक्षपात नहीं करता
इसी के साथ विदा
जय जय
:-ये बस विचार है इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष को ठेस पहुचाना नहीं है
उत्कृष्ट जीवन का स्वरुप हैं - दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर-श्री राम शर्मा आचार्य
यदि शांति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन
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