आज ही मैं इस दुनिया में आई , अभी आँखें भी नहीं खुली थी मैं पहचानने की कोशिस कर रही थी की मैं कौन हू ?
जवाब सोचने से पहले ही किसी की आवाज़ कानो में पड़ी की 'लड़की हुई है '
और एक ही पल में मैं अपने आप को पहचान गयी की मैं औरत हू .
जवाब मिलते ही मेरा मन विचारों की उथल पुथल से और भी विचलित हो गया .
मन में कई तरह के सवाल उठने लगे , कई तरह की शंकाए घर करने लगी
वो सभी रिश्ते दिमाग में आने लगे जो निभाने होंगे और वो रिश्ते भी जो शायद ता उम्र ढोने भी होंगे, ये भी सवाल उठा की एक औरत के रूप में मुझे पहचान मिली है या मेरा वजूद इस पुरुष प्रधान समाज में कही खो गया है .
मस्तिषक में एक निर्बल सदा दबी कुचली हुई मोम की गुडिया सादृश्य जानवर की छवि दिखाई देने लगी जिसे नारी कहा जाता है
जिसे कभी कभी बाहर की दुनिया में बराबर मान भी लिया जाये पर पुरुष का अहम उसे कभी अपने बराबर नहीं मान सकता
फिर चाहे वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम हो या ऋषि गौतम या फिर आज के ज़माने के नौजवान
जड़ें खोदो तो सब के भीतर एक गर्वीला पुरुष अब भी उस नारी को बराबर का दर्ज़ा देने से कतराता है .
फिर मैंने सोचा कि मैं ये सब क्यों सोच रही हू , अगर मैं भी इसी तरह सोचने लगी तो मुझमे और उन पूर्वाग्रहों से ग्रसित दूसरी औरतों में क्या अंतर रह जाएगा जो जीवन भर यही सोचती है और सबला से अबला हो जाती है
अन्नपूर्णा से आश्रित हो जाती है और किसी न किसी हद तक उस गुटन भरे जीवन के लिए खुद जिम्मेदार होती है .
हम सबको अपना जीवन सवारने का अधिकार है हर कोई अपना भाग्य खुद लिखता है हाथों कि लकीरों का सहारा निकम्मे और नाकारा लोगो का हथियार है
मैं अपनी तकदीर खुद लिखूंगी और अपनी राह खुद बनाउंगी तब भी यही आवाज़ सुनाने को मिलेगी
कि लड़की हुई है पर तब उस आवाज़ में गर्व होगा
-दुसरा मलंग
जवाब सोचने से पहले ही किसी की आवाज़ कानो में पड़ी की 'लड़की हुई है '
और एक ही पल में मैं अपने आप को पहचान गयी की मैं औरत हू .
जवाब मिलते ही मेरा मन विचारों की उथल पुथल से और भी विचलित हो गया .
मन में कई तरह के सवाल उठने लगे , कई तरह की शंकाए घर करने लगी
वो सभी रिश्ते दिमाग में आने लगे जो निभाने होंगे और वो रिश्ते भी जो शायद ता उम्र ढोने भी होंगे, ये भी सवाल उठा की एक औरत के रूप में मुझे पहचान मिली है या मेरा वजूद इस पुरुष प्रधान समाज में कही खो गया है .
मस्तिषक में एक निर्बल सदा दबी कुचली हुई मोम की गुडिया सादृश्य जानवर की छवि दिखाई देने लगी जिसे नारी कहा जाता है
जिसे कभी कभी बाहर की दुनिया में बराबर मान भी लिया जाये पर पुरुष का अहम उसे कभी अपने बराबर नहीं मान सकता
फिर चाहे वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम हो या ऋषि गौतम या फिर आज के ज़माने के नौजवान
जड़ें खोदो तो सब के भीतर एक गर्वीला पुरुष अब भी उस नारी को बराबर का दर्ज़ा देने से कतराता है .
फिर मैंने सोचा कि मैं ये सब क्यों सोच रही हू , अगर मैं भी इसी तरह सोचने लगी तो मुझमे और उन पूर्वाग्रहों से ग्रसित दूसरी औरतों में क्या अंतर रह जाएगा जो जीवन भर यही सोचती है और सबला से अबला हो जाती है
अन्नपूर्णा से आश्रित हो जाती है और किसी न किसी हद तक उस गुटन भरे जीवन के लिए खुद जिम्मेदार होती है .
हम सबको अपना जीवन सवारने का अधिकार है हर कोई अपना भाग्य खुद लिखता है हाथों कि लकीरों का सहारा निकम्मे और नाकारा लोगो का हथियार है
मैं अपनी तकदीर खुद लिखूंगी और अपनी राह खुद बनाउंगी तब भी यही आवाज़ सुनाने को मिलेगी
कि लड़की हुई है पर तब उस आवाज़ में गर्व होगा
-दुसरा मलंग