दिये की रौशनी में चुपके से देखा करता था
जब बाल संवारती थी तू
लगता था की बांध जाती है
मेरे सांसो की डोर भी
उस चोटी में तेरे बालो के साथ
चमकती पसीने की बूंदों को
जब झटकती थी
तो लहरा जाती थी नागिन सी तेरी चोटी
पर इस बार देखा तुझे तो
आँखें सूनी और न थी वो शरारती मुस्कान
साँसों की डोर जो टूट गयी थी मेरी
तेरी चोटी के खुलने से
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