आज भी जनम लेते है श्री कृष्ण पर अब ना उन्हें परवाह है
कंस के दमन की
ना इच्छा है कालिया के मर्दन की
सारथि बनाना भूल गए
याद नहीं अर्जुन और
बदल गया गीता का सन्देश
अब तो फल की इच्छा पहले होती है
कर्म तो दूसरों से करवाते है
खो गया वो पुरुषार्थ जो अत्याचार और बुराइयों को मिटाने को
रहता था हर क्षण तत्पर
अब तो चक्र भी काम आता है द्रौपदी के वस्त्र हरण को
बस रास रचना ही नहीं भूले अब तक
अगर ये सब झूठ लगे तो देख लो एक नज़र उठा के
अपने भीतर और चारों और
जो आज के कृष्ण है वो ऐसे ही है
कंस के दमन की
ना इच्छा है कालिया के मर्दन की
सारथि बनाना भूल गए
याद नहीं अर्जुन और
बदल गया गीता का सन्देश
अब तो फल की इच्छा पहले होती है
कर्म तो दूसरों से करवाते है
खो गया वो पुरुषार्थ जो अत्याचार और बुराइयों को मिटाने को
रहता था हर क्षण तत्पर
अब तो चक्र भी काम आता है द्रौपदी के वस्त्र हरण को
बस रास रचना ही नहीं भूले अब तक
अगर ये सब झूठ लगे तो देख लो एक नज़र उठा के
अपने भीतर और चारों और
जो आज के कृष्ण है वो ऐसे ही है
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