हां मुझमे भरा है गुस्सा एक जिंदा शमशान धधकता है ह्रदय में ।
किसलिए?
कोई एक कारण हो तो गिनाऊ
इस सड़े हुए समाज को देख जलता हु
इस देश की दशा देख झुलसता हूँ
लोगो की बेवकूफी दोगलापन नासमझी बेइमानी झूठ फरेब नफरत क्या नहीं है जो इस आग में घी का काम नहीं करता ।
मानव शरीर जो एक प्रतिमा समान था उसे भोग्य वस्तू बना दिया है
मानवता मनुष्यता आदर्श हर एक बात को कचरे के डब्बे में डाल दिया है ।
सच्चाई इमानदारी निश्चल प्रेम जैसी बाते तो जीवन से क्या धीरे धीरे किताबों से भी गायब होती जा रही है ।
देश धर्म समाज अब हमें जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम कर रहा है ।
पशुओं से भी गए गुजरे लोग धर्म और समाज के ठेकेदार बन नोचने और बेचने में लगे है।
ये सब अगर मेरे गुस्से को जायज़ ठहराने के लिए गर काफी ना हो तो आगे सुनो
पैसा अब परिवार और प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है
प्यार अब पवित्र नहीं शारीरिक सुख मात्र रह गया है
सिनेमा में किसी के दुःख को देख पलकें गीली होती है पर असल जिंदगी में किसी ज़रूरतमंद की मदद तो दूर उसकी तरफ आँख उठा कर नहीं देखते
दोस्ती भी अब मतलब की ही होती है
को जितना बड़ा मौकापरस्त वो उतना ही समझदार
नारी खुद सांसारिक चमक दमक को पाने के लिए अपनी अस्मिता का सौदा करने से नहीं चूकती ।
धन दौलत झूठी शोशेबाज़ी दिखावा ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य बन गया है
पुराने ज़माने में भी राक्षस नराधम होते थे और आज भी है बस अब उनके सींग पूँछ नहीं होते ।
कभी कभी मन करता है की आग लगा दू इस संसार को भस्म कर दूँ संहारक बन इस सृष्टि को।
सब कुछ एक बार फिर शून्य हो जाये
एक नयी शुरुआत हो
पर डर लगता है क्या होगा जब एक नयी शुरुआत के बाद
फिर से सब अच्छा ही होगा या कहीं फिर से सब इसी तरह गर्त में चला गया तो कितनी बार परशुराम बन इस धरा को कोई पापियों से कोई मुक्त कराये
समय साक्षी है परशुराम राम कृष्ण कोई भी हो उन्होंने भी यही सोचकर धरा को पापियों से मुक्त किया था की अब एक नयी शुरुआत होगी
पर आज ना परशुराम है ना कृष्ण ना राम
पर बुराई पाप और गंदगी आज भी है
और अट्टहास कर रही है सच और अच्छाई की नाकामी पर ।
ना जलाने पर ये जग निर्मल होगा ना ये मेरे मन की अग्नि धधकना बंद करेगी
-दूसरा मलंग
किसलिए?
कोई एक कारण हो तो गिनाऊ
इस सड़े हुए समाज को देख जलता हु
इस देश की दशा देख झुलसता हूँ
लोगो की बेवकूफी दोगलापन नासमझी बेइमानी झूठ फरेब नफरत क्या नहीं है जो इस आग में घी का काम नहीं करता ।
मानव शरीर जो एक प्रतिमा समान था उसे भोग्य वस्तू बना दिया है
मानवता मनुष्यता आदर्श हर एक बात को कचरे के डब्बे में डाल दिया है ।
सच्चाई इमानदारी निश्चल प्रेम जैसी बाते तो जीवन से क्या धीरे धीरे किताबों से भी गायब होती जा रही है ।
देश धर्म समाज अब हमें जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम कर रहा है ।
पशुओं से भी गए गुजरे लोग धर्म और समाज के ठेकेदार बन नोचने और बेचने में लगे है।
ये सब अगर मेरे गुस्से को जायज़ ठहराने के लिए गर काफी ना हो तो आगे सुनो
पैसा अब परिवार और प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है
प्यार अब पवित्र नहीं शारीरिक सुख मात्र रह गया है
सिनेमा में किसी के दुःख को देख पलकें गीली होती है पर असल जिंदगी में किसी ज़रूरतमंद की मदद तो दूर उसकी तरफ आँख उठा कर नहीं देखते
दोस्ती भी अब मतलब की ही होती है
को जितना बड़ा मौकापरस्त वो उतना ही समझदार
नारी खुद सांसारिक चमक दमक को पाने के लिए अपनी अस्मिता का सौदा करने से नहीं चूकती ।
धन दौलत झूठी शोशेबाज़ी दिखावा ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य बन गया है
पुराने ज़माने में भी राक्षस नराधम होते थे और आज भी है बस अब उनके सींग पूँछ नहीं होते ।
कभी कभी मन करता है की आग लगा दू इस संसार को भस्म कर दूँ संहारक बन इस सृष्टि को।
सब कुछ एक बार फिर शून्य हो जाये
एक नयी शुरुआत हो
पर डर लगता है क्या होगा जब एक नयी शुरुआत के बाद
फिर से सब अच्छा ही होगा या कहीं फिर से सब इसी तरह गर्त में चला गया तो कितनी बार परशुराम बन इस धरा को कोई पापियों से कोई मुक्त कराये
समय साक्षी है परशुराम राम कृष्ण कोई भी हो उन्होंने भी यही सोचकर धरा को पापियों से मुक्त किया था की अब एक नयी शुरुआत होगी
पर आज ना परशुराम है ना कृष्ण ना राम
पर बुराई पाप और गंदगी आज भी है
और अट्टहास कर रही है सच और अच्छाई की नाकामी पर ।
ना जलाने पर ये जग निर्मल होगा ना ये मेरे मन की अग्नि धधकना बंद करेगी
-दूसरा मलंग