Sunday, March 18, 2012

भूख

बुराई अपराध गंदगी भ्रष्टाचार क्यों फैलता है , दुनिया में , देश में या फिर हमारे आस पास .
बस एक वज़ह या कारण से भूख .
चाहे वो भूख पेट कि हो पैसे कि हो शरीर कि या फिर अपना नाम पाने की हो .
हर चोटी बड़ी बुराई कहीं ना कहीं से भूक्स से जुडी होती है ..
पेट की भूख से चोरी ,पिसे कि भूख से बेईमानी रिश्वत , जिस्म कि भूख से बलात्कार वेश्यावृत्ति और इन सबसे बड़ी नाम पाने कि भूख. जो ऊपर लिखे गए हर एक अपराध कि जड़ होती है .

नाम जिसका जन्म से पहले कोई अस्तित्व नहीं और ना ही मरने के बाद .
अब आप कहोगे की हम हजारों ऐसे नाम गिना दे जो मरने के बाद भी सबके जेहन में जिंदा रहते है . तो एक बात कहूँगा और हमेशा कि तरह इस बार भी इस बात से असहमत होने वालों कि क़तर लंबी ही होगी
बात ये है कि मुर्दों के या ये कहे अमर लोगों के नाम नहीं , हम उनके काम याद रखते है .
नाम ना ही तो अछे होते है ना ही बुरे . अछे या बुरे तो काम होते है .

ना जाने फिर आजकल जिसे देखो हर कोई बस नाम के पीछे ही पड़ा है . कोई अपना नाम ना होने से नाराज़ तो कोई दूसरे का नाम होते देख जलता हुआ . कभी कभी सोचता हू पहले भी ऐसा होता तो ना हम कभी आज़ाद होते ना कभी आगे बढते
स्वत्न्र्ता के समर में ना जाने कितने अनाम हुतात्माओं ने देशप्रेम कि वेदी पर अपने प्राणों कि आहुति दी
जिनके नाम ना कोई जनता है ना भविष्य में उनके नाम जान  पाने कि कोई आशा है .
वो एक निस्वार्थ बलिदान था .
ठीक इसी तरह हम लगभग हर रोज आंतकियों या नक्सलियों के हमले में शहीद होने वाले पुलिसकर्मियों और सैनिको के बारे में पढते है , क्या वे सब अपने नाम के लिए अपनी जान न्योछावर करते है .?
तमाम उम्र बेनामी जिंदगी जीते है और मरने के बाद भी कोई नाम नहीं .
जब ये इतना बड़ा त्याग बिना नाम होने कि परवाह किये कर देते है , और एक हम है जो एक ठीकरे भर का काम करके भी चाहते है कि पूरी दुनिया में ढिंढोरा पीटा जाए हमारे काम का , कभी कभी तो किसी और के काम को भी अपना बताकर हम अपना नाम कमाने से नहीं चूकते . देखा कितनी बड़ी भूख है ये नाम की .
कुछ दिन पहले कि बात है किसी किताब में पढ़ा था कि जब हम कुछ पाने कि आशा में परोपकार या भला करते है तो वो परोपकार नहीं व्यापार बन जाता है .
मतलब ये की दो पल कि या उस से कुछ लंबी शौहरत पाने के लालच में ही ये सब अच्छे और भली का नाटक चलता है .
ऐसे लोग भी दीखते है जो सबके सामने बड़े से बड़ा डान करने से नहीं चूकते और जब किसी कि निगाह ना हो उन पर तो उनकी जेब से फूटी कौड़ी या जुबां से प्रेम के दो बोल भी नहीं निकलते .
अगर उद्देश्य भलाई है तो नाम होने या ना होने का कोई औचित्य ही नहीं . अगर मूल उद्देश्य परोपकार पूरा हो रहा है तो फिर एक झूठे नाम और क्षण भर कि प्रसिद्धि मिलने से कैसी प्रसन्नता और ना मिलने से कैसा क्षोभ

इसी के साथ विदा
जय जय
-दुसरा मलंग

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