सोचा आज लिखू कुछ तेरे बारे में
पर बैठा जब लिखने तो कुछ भी ना लिख पाया
ना कोई गीत ना कोई कहानी
भोर के पहले उन्नीन्दी आँखों से
(कभी किसी ख्वाब में तेरी ही ज़ुबानी
देखा तुने सर्दी की गुनगुनी धुप में कांपते हाथो से
गिलहरियों को अखरोट खिलाते
बारिश की बूंद में
कभी लगा के तू मुस्कुरा रही है
मई की तेज़ दुपहरी में
बर्फ के गोले खाते हुए कभी लगा के तू मुस्कुरा रही है
मई की तेज़ दुपहरी में
माथे से छलकती पसीने की बूँदें हटाते हुए
कभी ख्यालों में तो कभी यादो के गलियारे में
देखा है मैंने तुझे ध्होप छांव के खिलवाड़ में
कभी लगा के शबनमी रात में परदे के पीछे
शरारती अंदाज़ में मुझे बांहें फैलाये बुलाती हुई
मैं ये भी नहीं जनता ये ख्वाब कभी पूरे होंगे या नहीं
फिर भी ताउम्र करूँगा सजदा यूँहीं तेरे मेरे इस अनजान अनदेखे अनकहे रिश्ते का
इस तरह बीता लेंगे ख्वाब में कुछ पल
यूँही गिलहरियों को अखरोट खिलाते खिलाते
specialt thanks to
Akanksha Purohit
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