Monday, March 28, 2011

TU

सोचा आज लिखू कुछ तेरे बारे में
पर बैठा जब लिखने तो कुछ भी  ना लिख पाया

ना कोई गीत ना कोई कहानी
बस लिखा उस ख्वाब को जो सुना था 
भोर के पहले उन्नीन्दी आँखों से 
  (कभी किसी ख्वाब में तेरी ही ज़ुबानी 
देखा तुने सर्दी की गुनगुनी धुप में कांपते हाथो से

गिलहरियों को अखरोट खिलाते
तो अगले ही पल गुनगुनाने लगी तू मेरा हाथ थाममें
बारिश की बूंद में

कभी लगा के तू मुस्कुरा रही है
मई की तेज़ दुपहरी में
बर्फ के गोले खाते हुए
माथे से छलकती पसीने की बूँदें हटाते हुए

कभी ख्यालों में तो कभी यादो के गलियारे में 
देखा है मैंने तुझे ध्होप छांव के खिलवाड़ में


कभी लगा के शबनमी रात में परदे के पीछे
शरारती अंदाज़ में मुझे बांहें फैलाये बुलाती हुई
मैं ये भी नहीं जनता ये ख्वाब कभी पूरे होंगे या नहीं
फिर भी ताउम्र करूँगा सजदा यूँहीं

तेरे मेरे इस अनजान अनदेखे अनकहे रिश्ते का
और ना मिल सके तो भी कोई इल्म नहीं
इस तरह  बीता लेंगे  ख्वाब में कुछ पल
यूँही गिलहरियों को अखरोट खिलाते खिलाते

specialt thanks to
Akanksha Purohit

No comments:

Post a Comment