Monday, March 28, 2011

TU

सोचा आज लिखू कुछ तेरे बारे में
पर बैठा जब लिखने तो कुछ भी  ना लिख पाया

ना कोई गीत ना कोई कहानी
बस लिखा उस ख्वाब को जो सुना था 
भोर के पहले उन्नीन्दी आँखों से 
  (कभी किसी ख्वाब में तेरी ही ज़ुबानी 
देखा तुने सर्दी की गुनगुनी धुप में कांपते हाथो से

गिलहरियों को अखरोट खिलाते
तो अगले ही पल गुनगुनाने लगी तू मेरा हाथ थाममें
बारिश की बूंद में

कभी लगा के तू मुस्कुरा रही है
मई की तेज़ दुपहरी में
बर्फ के गोले खाते हुए
माथे से छलकती पसीने की बूँदें हटाते हुए

कभी ख्यालों में तो कभी यादो के गलियारे में 
देखा है मैंने तुझे ध्होप छांव के खिलवाड़ में


कभी लगा के शबनमी रात में परदे के पीछे
शरारती अंदाज़ में मुझे बांहें फैलाये बुलाती हुई
मैं ये भी नहीं जनता ये ख्वाब कभी पूरे होंगे या नहीं
फिर भी ताउम्र करूँगा सजदा यूँहीं

तेरे मेरे इस अनजान अनदेखे अनकहे रिश्ते का
और ना मिल सके तो भी कोई इल्म नहीं
इस तरह  बीता लेंगे  ख्वाब में कुछ पल
यूँही गिलहरियों को अखरोट खिलाते खिलाते

specialt thanks to
Akanksha Purohit

Wednesday, March 23, 2011

nawab ki duniya-iii

पिछली बार जब नवाब मिला था तो दिल्ली दर्शन की बात कह के गया था ,
सो इतनी ज़ल्दी तो आने से रहा .ये सोच कर मैं अपनी आराम कुर्सी से उठा और सोचा चलो आज छुट्टी का दिन है 
दो-चार कदम टहल लिया जाए 
देख लिया जाए की कहीं रोज़ रात में न्यूज़ चैनल पर जो डरावना बालों से भरे भालू को चुनोती देता इन्सान 
जो हमें हमारे पड़ोस में रहने वाले हत्यारों जालसाजो की करनी और बातें सुना और दिखा के हमारी नींद हरम करता है 
वो कहीं मेरे घर का मासूम नौकर या मेरे रिटायर पडोसी शर्मा जी तो नहीं .
तो ये सोच के निकल पड़ा मैं भी अपने मोहल्ले के दर्शन को यहाँ पढ़े लिखों की जुबां में कहे तो " कॉलोनी की साईट सीइंग को "

जैसा की मुझे पहले से अंदेशा था की बाकि चटपटी मसालेदार कब्रों की तरह ही उस डरावने शुभचिंतक इंसानी भालू न्यूज़ रीडर की चेतावनी भी ख़बरों की मसालेदार दाल का तड़का ही थी .
न मेरा मासूम नौकर हत्यारा निकला न ही बूढ़े शर्मा जी आतंकवादी .
ये देखकर मैं तो खुश हो गया पर थोडा दुःख इस बात का हुआ की वो सनसनी फ़ैलाता नौजवान कितना दुखी होगा जब उसे पता चलेगा कि मेरे घर का नौकर काटने के नाम पे बस सब्जी और वक़्त काटता है 
और बूढ़े शर्मा जी कि तो बस एक जुबान ही है जो चलने के काबिल रह गयी है 
वो तो ठीक से छड़ी के सहारे भी नहीं चल सकते ,तो बन्दूक क्या खाक चलाएँगे.
खैर जाने दो मैं क्यूँ अपनी ख़ुशी बर्बाद करू और अगर इस चिंता से उस खबरी के कुछ बाल झड भी गए तो ज्यादा से ज्यादा उसकी परम पूजनीय माता जी तो दुआ ही देंगी कि चलो अब उनके बेटे के बाल कुछ तो कम हुए .
यही सब सोचता हुआ आ पहुंचा एक पान कि टपरी पर अपनी देश भक्ति का सुबूत देने को 
अब आप पूछेंगे के सिगरेटका देशभक्ति से क्या वास्ता  तो ये लत वैसे तो नवाब ने लगाई मुझे और वो भी देशभक्ति का नाम देकर .
तो हुआ यूँ के एक दिन आया नवाब मेरे घर एक अँगरेज़ कंपनी कि कैंसर स्टिक होठों से लगाये 
मैंने उसे बोला  "अमाँ यार क्यूँ अपनी जिंदगी के बेशकीमती दिन कम कर रहे हो "
नवाब ने अपने जाने पहचाने अल्हड और बेबाक लहजे में कहा " देखो मियां जिंदगी छोटी या बड़ी होने से क्या होता है ? जिंदगी तो बस किसी काम कि होनी चाहिए ,अगर कोई कुछ करना चाहे तो बित्ते भर कि जिंदगी में भी कर सकता है 
अपने माइकल  जैक्सन भगत सिंह को ही देख लो छोटी से जिंदगी में कितना बड़ा नाम कर गए दुनिया में , और दूसरी तरफ अपने देश के नेता जो ठीक से सहारा लेकर चल भी नहीं पाते और बात करते है देश चलाने की , हफ्ते के तीन दिन तो अस्पताल में पड़े रहते है और बात करते है हिंदुस्तान को नम्बर वन बनाने की
दुनिया के सबसे ज्यादा जवान हमारे यहाँ और किस्मत देखो सबसे बूढी संसद भी हमारी   "
तो मैंने कहा "नवाब साहब अब इसका इलाज भी आप ही बताओ "
नवाब किसी नटखट बच्चे की तरह चहकते हुए बोला "इलाज तो बहुत आसान और सस्ता है, बस चुनाव से पहले इन चुस्त दुरुस्त इतिहासिक ढांचों की एक दौड़ करवा दो    "
मैंने कहा "जवान संसद बनाने में और बोधे नेताओं की दौड़ का क्या वास्ता "
तो नवाब ने मुस्कुराते हुए कहा "अरे जब ये वर्तमान का खून चूसने वाले भूतकाल के भेड़िये दौड़ेंगे तो आधे से ज्यादा का तो रस्ते में ही हरी बोल हो जाएगा और जो बचेंगे उनका फिनिश लाइन तक पहुँचते पहुँचते दम निकल जाएगा. है न सस्ता और आसान तरीका   "
"वाह क्या बात है " मैंने कहा 
"अब ज़रा सिगरेट और देशभक्ति के रिश्ते पर भी ज़रा रौशनी डालो "
तो नवाब ने धुंए का एक चालला बनाते हुए कहा "देखो २०० साल तक अंग्रेजो ने हमें लूटा ,हमारी सुलगाते रहे तो अब हमारी बारी है अब वो दिन तो हैं नहीं के हम उन्हें जला सके तो क्यों न उनकी बने सिगरेट को ही सुलगा लेते है  "

तो मैंने थोडा संजीदगी से कहा " पर यार इसमें तो तुम्हार भी नुक्सान है  क्या पता इस लत से तुम जल्द ही भगवन को प्यारे हो जाओ "
"अरे ये तो और भी अच्छा है अगर इन्शाल्ल्लाह ऐसा हो गया तो मैं भी शहीद हो जाऊंगा और दुनिया में अमर हो जाऊंगा " हँसते हुए नवाब बोला
मैंने ज़रा चिड़ते हुए  कहा " मेरे प्यारे नवाब इतिहास में शामिल होने और शहीद बनने का क्राईत्रिया तो तुम पूरा नहीं करते , देशभक्त और शहीद साबित होने के लिए अपने इस भारत महान में काम कुछ किया हो या न किया हो  पर नाम बहुत काम आता है , इतिहास की किताब उठा के देख लो आज़ादी के बाद से ही हमारे 'बापू ' 'चाचा ' और उनके होनहार बच्चे सब के सब एक ही नाम का सहारा लेकर अमर शहीद हुए 
इसलिए तुमको भी अगर ये अंग्रेजी ब्रांड की चूरूत फून्ख कर शहीद बनना है तो पहले अपना नाम बदल लो  "
नवाब ने सरसरी नज़र डालते हुए कहा "अरे यार मैं तो तुम्हे समझदार समझता था पर तुम तो निरे जाहिल निकले  मन मेरे नाम में वो शहीदों वाला नाम नहीं जुड़ा पर लोग तो मुझे नवाब नाम से पुकारते है तो इस हिसाब से मैं अल्पसंख्यक कोटे से शहीद बन जाऊंगा है की नहीं ?"
"वाह ! क्या दूर का पासा खेला है , अब तो मुझे भी लगता है की फूंकना शुरू कर देना चाहिए शायद मेरी किस्मत में भी शहादत लिखी हो "मैंने खिलखिलाते हुए कहा 
तो यारो ये थी एक और मुलाकात मेरी नवाब के साथ 
अब मिलते है अगली बार और शायद इस बार नवाब भी आ जाये दिल्ली दर्शन करके 
तब तक के लिए अलविदा

Monday, March 14, 2011

ZAMOORA

बात करते थे ज़म्हूरियत की 
और जब मिली डोर मुल्क की 
तो मुल्क को ज़मूरा बना के छोड़ दिया 

-- योगेश पारीक